कंडुआ रोग से धान की फसल को बचाने के लिए सरल तरीका, बीज शोधन कैसे करें

कंडुआ रोग से धान की फसल को बचाने के लिए सरल तरीका, बीज शोधन कैसे करें

 

खरीफ मौसम में, किसान धान की खेती को प्रमुखता देते हैं। इस उन्नत खेती में, बीजों की गुणवत्ता से लेकर उनके उचारण, बुआई, सिंचाई जैसे कई महत्वपूर्ण प्रमुख घटक होते हैं। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, पिछले वर्ष कई किसानों की फसलें कंडुआ रोग से प्रभावित हुई थीं। इस परिस्थिति में, आवश्यकता है कि किसान इस साल अपनी फसल को पहले से ही इस रोग से बचाने के उपाय अपनाएं, ताकि उनकी पैदावार पर बुरा असर न पड़े। इसके लिए, किसानों को धान के बीजों की पहचान और शोधन करने की आवश्यकता होगी।

किसान धान की खेती को खरीफ मौसम में महत्वपूर्ण मानते हैं, और उनकी सफलता में विभिन्न महत्वपूर्ण कारकों का योगदान होता है। इसके लिए उन्हें उच्च गुणवत्ता वाले बीजों की खरीद, बीज की सही मात्रा का चयन, उचित तरीके से बीज उच्चारण, बुआई की समय पर और सही तरीके से करना, और पूरी तरह से व्यवस्थित सिंचाई करने की आवश्यकता होती है।

यदि हम कृषि वैज्ञानिकों की बातें सुनें, तो पिछले वर्ष कई किसानों की फसलें कंडुआ रोग के प्रकोप के चलते प्रभावित हो गई थीं।

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इस परिस्थिति में, यह महत्वपूर्ण है कि किसान इस वर्ष पहले से ही धान की फसल को उस रोग से बचाएं, ताकि फसल की पैदावार पर कोई असर न पड़े। इसके लिए किसान को धान के बीजों की खोज और शोध करनी होगी।

इस तरीके से करें बीजों का शोधन 

  • नर्सरी में धान की खेती की तैयारी से पहले, बीजों का शोधन जरूरी होता है।
  • पहले, लगभग 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन को लगभग 40 से 45 लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाएं।
  • इसके बाद, धान के बीजों को इस घोल में 16 से 18 घंटे के लिए भिगोकर रख दें। अब बीजों को छानकर छाया में सुखा ले।
  • पूर्व-नर्सरी में धान की खेती की तैयारी के पूर्व, बीजों का शोधन अवश्यक होता है।
  • इसके बाद, लगभग 60 ग्राम कार्बेंडाजिम को बीजों में मिलाएं और उन्हें जूट की बोरियों में भिगोकर ढक दें।
  • इस प्रक्रिया को लगभग 15 से 18 घंटे तक चलने दें। जब बीजों में सफेद अंकुरण दिखने लगे, तो इन बीजों से धान की नर्सरी को तैयार करें।
  • इस प्रक्रिया को शाम के समय ही आयोजित करने में ध्यान दें।

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यदि बालियों पर कंडुआ का प्रकोप दिखाई दे, तो तुरंत सतर्कता बरतते हुए बालियाँ हटा लें और उन्हें ध्वस्त करने के लिए थैलियों में भरकर मिट्टी में दबा दें। इसके परिणामस्वरूप, बीजाणुओं का वायुमंडल में प्रसार रोका जा सकता है। इस तरीके से धान की फसल को कंडुआ रोग के प्रसार से बचाया जा सकता है।

 

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